मिथिलाक सांस्कृतिक सीमा
मिथिला अथवा तिरहुत पुरान जनपद थीक । राजर्षि निमिक पुत्र ‘मिथि’ ई नगरी
बसौने छलाह जे आगू जा कऽ ‘मिथिला-जनपद’ प्रसिद्ध भेल
।
वृहद्विष्णुपुराणमे सीमा निर्देशक सङ्ग-सङ्ग ई कतबा नाम ओ चाकर अछि सेहो कहल
गेल अछि
कोशीसँ गण्डकी धरि मिथिलाक नमती चौबीस योजन अर्थात् छियानव्बे कोस एवं
गङ्गासँ हिमालयक वन पर्य्यन्त चकराइ सोलह योजन अर्थात् चौंसठि कोस अछि।
‘आईने-अकबरीमे’ ‘तिरहुत सरकार’ क सीमा इएह कहल गेल अछि (जेना
“अज गड ता सङ्ग अज कोश ता भूस”
मिथिला-भाषा रामायणक रचयिता चन्दा झा सेहो लिखने छथि
“गङ्गा बहथि जनिक दक्षिण दिश पूर्व कौशिकी धारा।
पश्चिम बहथि गण्डकी उत्तर हिमवत बल विस्तारा।
कमला, त्रियुगा, अमृता, धेमुड़ा, बागमती, कृतसारा।
मध्य बहथि लक्ष्मणा प्रभृति से मिथिला विद्यागारा।”
सारांश ई, जे मिथिलाक उत्तरमे हिमालय, दक्षिणमे गङ्गा नदी, पूर्वमे कोशी एवं
पश्चिममे गण्डकी नदी अछि।
एतबा दूरमे मिथिलाक संस्कृति – भाषा, धार्मिक आचार-विचारक संस्कृति – विद्यमान
छल।
‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया’ मे डाक्टर ग्रियर्सन मैथिली भाषा प्रचारक दृष्टिसँ
मिथिलाक सीमा निदृष्ट कय गेलाह अछि। एहिसँ बोध होइत अछि जे मिथिलाक पश्चिमी
सीमा अओर आगू मोतीहारिअहुसँ पूब बढ़ि आयल अछि।
आइ डाक्टर साहेब द्वारा निदृष्टि सीमहुमे अन्तर आबि गेल अछि।
हँ, तँ मिथिलाक संस्कृतिक उन्मूलन पश्चिमसँ किएक भेल एवं पूब किएक घसकि
गेल ?. ई तँ सर्व्वमान्य अछि जे मिथिलाक संस्कृति वेद-सम्मत छल। मिथिलामे विदेह एवं
लिच्छवीक दुइ राज्य छल- पूबमे विदेहक ओ पश्चिममे लिच्छवीक । ई दुहू राज्य गणतन्त्र रहय।
लिच्छवीक राजधानी ‘वैशाली’ छल। ‘वैशाली’ रामायण कालहुमे अत्यन्त प्रसिद्ध एवं सम्पन्न
. नगरी छल। आइ-काल्हि ओहि स्थानमे मुजफ्फरपुर जिलाक ‘बसाढ़’ अछि। एहि ‘वैशाली’ में
‘जैन’ क अन्तिम तीर्थक महावीर स्वामी उत्पन्न भेल छलाह। भगवान् बुद्धो एहि ठाम
प्रचार कार्य कयलन्हि । ओ वैशालीसँ ‘कुशीनगर’ जाइत काल अपन महिमासँ ‘बाया’ नामक
नदी प्रगट कयलन्हि। बौद्धलोकनिक प्रथम महती सभा वैशालिअहिमे भेल छल। गण्डकसँ पूब
‘लौरिया’ मे अशोकक लाट ( स्तम्भ ) आइयो विद्यमान अछि। एहिसँ नीक जकाँ बुझबामे अबैत
अछि जे बौद्ध एवं जैन धर्म मिथिलाक पश्चिमीय भागमे प्रबल भय रहल छल। कहबाक
प्रयोजन नहि जे ई दुहू धर्म ब्राह्मण धर्मक विरुद्ध अवैदिक छल। वैदिक संस्कृति एहि दुहू
धर्मक संस्कृतियो अवश्ये भिन्न छल। एहीसँ हमरा विचारें बौद्ध एवं जैन संस्कृतिक कारण
मिथिलाक संस्कृति ओकर पश्चिम भागमे लुप्तप्राय भय गेल । ई तँ स्पष्टे अछि जे मैथिल
दार्शनिक लोकनि बौद्ध एवं जैनक प्रचार कार्यके अपन केन्द्रमे एको रत्ती नहि होमय देलथीन ।
एहि विषय पर हम आनहु दृष्टिसँ विवेचना करय चाहैत छी । हमर तँ विचार अछि जे
मिथिला देशीय पञ्चाङ्गक व्यवहार व्यापक रूपसँ जतय धरि होइत अछि ततय धरि मिथिलाक
संस्कृति-क्षेत्र कहबाक चाही। किछु प्रवासी मैथिल लोकनि अपन प्रवासहुमे मिथिलाक पञ्चाङ्गसँ
काज चलाय लेथि ई भिन्न विषय थीक । हमर अभिप्राय ओही क्षेत्रसँ अछि जतय मिथिलाक
पञ्चाङ्ग सर्व साधारणमे व्यापकरूपसँ प्रचलित अछि।
बेश तँ, चलू, पहिने मिथिलाक पश्चिम भाग पर विचार करी। गण्डकक तँ कथे
कोन सम्पूर्ण चम्पारन जिला आइ मिथिलाक संस्कृतिसँ बाहर भऽ गेल अछि। अर्थात्
ओतय मिथिला देशीय पञ्चाङ्ग प्रचार कनेको नहि अछि – बनारसी पञ्चाङ्गक प्रचार अछि।
आब मुजफ्फरपुर जिलाके देखू
। अँगरेजी सरकार जे सीमा तिरहुत-विभागक निश्चित कयने
छथि ताहिमे मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सारन एवं चम्पारनक जिला अछि। किन्तु ई विभाग ने
डाक्टर साहेबकेँ नक्शहिसँ मिलैत अछि आ ने संस्कृतिक विवेचनहिसँ युक्तियुक्त बूझि पड़ैत
अछि।
ई तँ पहिनहि कहि आयल छी जे बौद्ध लोकनि मुजफ्फरपुरक पश्चिमी भागमे
‘वैशाली’ केँ अपन केन्द्र बनौलन्हि जे बाया नदीअहुसँ पूब अछि। आब हम यदि मानचित्र
मे -जतए ‘बाया’ नदी मुजफ्फरपुर जिलामे पैसैत अछि-ओही स्थानक केन्द्र मानि कए
बा मती (जतए ई मुजफ्फपुर जिलाक सीमामे अबैत अछि) हाजीपुर धरि एक चापाकार
रेखा मुजफ्फरपुर शहरक पश्चिमीय सीमाकेँ छूबैत खींची तँ स्पष्ट देखि पड़त जे हमर एहि
कल्पित रेखाक पश्चिम क्षेत्रमे मिथिला देशीय पञ्चाङ्गक व्यापक प्रचार नहि अछि। एहि
रेखा पूबसँ ई पञ्चाङ्ग चलैत अछि। अतएव सांस्कृतिक दृष्टिसँ मिथिलाक
सीमा हमर इएह ‘कल्पित रेखा’ मानल जाए सकैत अछि।
आब पूब दिश आउ। कोशी अहुसँ पूब पूर्णिया जिला पार करैत दिनाजपुर जिला क
पश्चिमीय भाग धरि इएंह पञ्चाङ्ग चलैत अछि। एकरो कारण स्पष्टे अछि। बौद्धक संस्कृति
‘बाया’ सँ बहराए कए बागमतीक आगू नहि बढ़ए पौलक। कारण, मैथिल दार्शनिक
लोकनि हुनक गतिक अवरुद्ध कए देलन्हि । एहिसँ बौद्ध संस्कृति दोसरहि बाटें बंगालमे
प्रविष्टि भेल अर्थात् पटनासँ बहराए कए गङ्गाक दक्षिण मुँगेर होइत देवघरक पश्चिमसँ
मयूराक्षीक पश्चिम तटसँ बंगालमे चल गेल अछि, गङ्गासँ दक्षिण एवं कोशीक पूबक ओ
क्षेत्र, जतए मिथिलाक पञ्चाङ्ग प्रचलित अछि, मिथिलाक उपनिवेश थीक । एहि उपनिवेशमे
सम्पूर्ण पूर्णिया जिला दिनाजपुरक किछु अंश एवं सन्थालपरगन्नाक बहुत पैघ भाग
सम्मिलित भय जाइत अछि। एकर कारण अओर अछि। प्राचीने कालसँ बंगाली छात्रक
सम्पर्क मिथिलासँ रहल अछि। अतएव ओम्हर मिथिलाक संस्कृति बहुत आगू धरि बढ़ि
गेल अछि। एहि प्रकारें मिथिला पश्चिमसँ जतेक गमाए देलक अछि, पूबमे ओतेक पाबियो
लेलक अछि।
ग्रियर्सन सब अपन नक्शामे पुरुलिनाकेँ मैथिली- बङ्गला मिश्रित एवं चायबासा
ओड़िया मिश्रित देखौलन्हि अछि । परन्तु ई नक्शा ओहि समयक थीक जखन बिहारक भाग्य
बंगालक सगँ निर्णीत होइत छल। ओहि समयमे पुरुलियामे बंगाली लोकनिक आबरजात होमए
लागल एवं पलस्वरूप ओतएक अवशिष्ट मैथिल-संस्कृति लुप्त-प्राय भय गेल । हँ ओतहुका
मैथिल लोकनिक घरसँ एम्हर मिथिलाक जे संसर्ग रहल अछि ओही कारण मैथिली भाषा अपन
विकृत रूपमे ओतए आइयो विद्यमान अछि। नहि तँ निष्प्राण तँ ओ कहिया ने भय गेल।
आई काल-चक्रक परिवर्त्तन भय गेल अछि। संसारक सभ केओ अपन-अपन संस्कृतिक
रक्षामे लीन अछि। एहेन परिस्थितिमे मिथिलहु चुप रहब उचित नहि । ई काज केवल
मिथिलहिक नहि थीक। वर्त्तमान सरकार सभक संस्कृति रक्षाक प्रयत्न कय रहल अछि। आशा
अछि, एहि सुयोगमे आनक संग-संग मिथिलहु अपन संस्कृतिक रक्षा करबाक अवसर प्राप्त
होत एवं ओ ओहि कार्यमे सफलता प्राप्त करत ।